कुरूक्षेत्र का ये मंदिर दूर करेगा सारे दोष, सूर्य देव की भी हुई थी मनोकामना पूरी

कुरूक्षेत्रपुराणों में गीता की गाथा हो या पांडवों-कौरवों के युद्ध का जिक्र हो दोनों से कुरुक्षेत्र याद आता है। महाभारत की याद दिलाता यह शहर हरियाणा में है। आज भी इस शहर की उतनी ही मान्‍यता है, जितनी द्रौपद काल में हुआ करती थी। यही वो स्‍थान था, जहां श्री कृष्‍ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दीया था। ऋगवेद और यजुर्वेद में भी इसके महत्‍व का वर्णन किया गया है।

भारत में अनेक मंदिर हैं यहां हर मंदिर की अपनी एक अलग मान्‍यता होती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसके बारे में आप ज्‍यादा नहीं जानते होंगे।

कुरूक्षेत्र से 8 किलोमीटर दूर कौमदा गांव में स्थित काम्‍यकेश्‍वर की मान्‍यता के बारे में आप नहीं जानते होंगे। रविवारीय शुक्ला सप्तमी के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस प्राचीन मंदिर का अलग ही आध्‍यात्मिक महत्‍व है।

काम्‍यकेश्‍वर मंदिर में रविवारीय शुक्ला सप्तमी के दिन जो भी श्रद्धालू दान करता है वो पाप मुक्‍त हो जाता है। उस दिन दान के बाद स्‍नान करने से मोक्ष को प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं अगर आप संतान सुख से अछूते हैं तो दुखी होने की आवश्‍यकता नहीं है। यहां आने से आपको संतान सुख ही नहीं पुत्र रत्‍न की प्राप्ति होती है।

इस दिन दान, स्नान, व्रत, हवन एवं पूजा करने से सभी प्रकार के दोष दूर होते हैं। यहां पर पानी में खड़े होकर ‘भानो भाष्कर मार्तण्ड चंडरश्मे दिवाकर, आरोग्यमायुर्विजयं पुत्रं देहि नमोस्तुते’ मंत्र का जाप करने से रोग, दोष इत्‍यादि दूर होते हैं।

पौराणिक मान्‍यता है कि इसी स्‍थान पर ही सूर्य और उनकी चार संतान यम, यमी, तपती व श्नैश्चर की उत्‍पत्ति हुई थी। यहां पर पांडवों को भी स्नान किया था। इसी दिन सूर्य की पत्‍नी रूपा उन्‍हें छोड़कर घोड़ी के रूप में चली गई थीं। उनका मिलन भी काम्यकवन में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि राजा कुरु ने पुण्यक्षेत्र कुरुक्षेत्र को भी रविवारीय शुक्ला सप्तमी के दिन प्राप्त किया था। इसका नाम धर्मक्षेत्र भी इसी दिन रखा गया।

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