नहीं जानतें होंगे देवताओं के 12 दिन और मनुष्यों के 12 वर्षों से जुड़ा कुंभ का यह राज

वृश्चिक राशि में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक साथ होंगे, तब 5 दिसंबर, रात 10 बजकर 23 मनट पर यह दुर्लभ योग शुरू हो गया है, जो ढाई दिन तक चलेगा। द्वादश महाकुंभ के इस योग में कुरुक्षेत्र स्थित ब्रह्मसरोवर में स्नान करने से चारों धामों की तीर्थ यात्रा करने का फल मिलेगा और सांसारिक, मानसिक सभी पाप-ताप से मुक्ति मिलेगी। सभी मोक्षदायिनी नदियों की क्षमता रखने वाला ब्रह्म सरोवर कुंभ स्नान के लिए बहुत ही पुण्यदाई है।

kumbh Mela

कुंभ भारतीय संस्कृति का ऐसा प्रारूप है, जिसने हजारों वर्षों से भारत को एक रखा है। कुंभ का आध्यात्मिक के साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से बहुत महत्व था। वैदिक काल में जिन बारह तीर्थों पर कुंभ का वर्णन मिलता है, उनमें एक कुरुक्षेत्र भी है। धर्म सम्राट स्वामी करपात्री ने  ‘कुंभ पर्व निर्णय’ पुस्तक में यहां कुंभ का उल्लेख किया है। उन्होंने देवताओं के 12 दिनों में और मनुष्यों के 12 वर्षों में 12 कुंभपर्वों का वर्णन किया है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक को छोड़कर कालांतर में आठ जगहों पर कुंभ परंपरा का लोप हो गया है। परंतु आगम-निगम, पुराणादि, धर्मशास्त्र और महाकाव्य आदि में संकलित इतिहास क्षतिग्रस्त होकर भी किसी न किसी रूप में वर्तमान में है।

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कुंभकोणम तमिलनाडू में कुंभ महालया के रूप में आज भी कुंभ की परंपरा विद्यमान है। हालांकि वहां एक दिन में ही सारा कार्यक्रम संपन्न हो जाता है। पिछले दिनों सर्वमंगला अध्यात्म योग पीठ, सिमरिया, बेगूसराय, बिहार के स्वामी चिदात्मन समेत साधु-संतों और नागरिकों प्रयासों से आठ सुप्त कुंभस्थलियों को जगाने के प्रयास हुए। बद्रीनाथ, पुरी (उड़ीसा), गंगासागर (बंगाल), द्वारका (गुजरात), रामेश्वरम और कुंभकोनम (तमिलनाडु) में सुप्त कुंभ जगाए जा चुके हैं। 2017 में  सिमरिया धाम, बेगूसराय, बिहार में महाकुंभ का शंखनाद हुआ। करीब डेढ़ करोड़ लोगों ने गंगापुण्य कमाया। वहां का आरंभ मत्स्यावतार की तरह बढ़ता ही जा रहा है।

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