जानिए किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां

किडनी ट्रांसप्लांट है क्या? ये कैसे कामयाब या नाकाम हो सकता है? किस तरह एक शरीर से किडनी निकालकर दूसरे में लगा दी जाती है और वो काम भी करती है?

जानिए किडनी ट्रांसप्लांट से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां

जैसा कि हम जानते हैं कि इंसानी शरीर में दो किडनी होती हैं और अगर इनमें से एक ख़राब हो जाए या फिर निकाल दी जाए तो भी काम चल सकता है.

किडनी बीन के आकार वाला ऑर्गन है, जो रीढ़ के दोनों तरफ़ होती हैं. आम तौर पर माना जाता है कि ये पेट के पास होती है लेकिन असल में ये आंत के नीचे और पेट के पीछे की तरफ़ होती है.

हर किडनी चार या पांच इंच की होती है. इनका मुख्य काम होता है ख़ून की सफ़ाई यानी छन्नी की तरह ये लगातार काम करती रहती है. ये वेस्ट को दूर करती हैं, शरीर का फ़्लूड संबंधी संतुलन बनाने के अलावा इलेक्ट्रोलाइट्स का सही स्तर बनाए रखती हैं. शरीर का ख़ून दिन में कई बार इनसे होकर गुज़रता है.

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नेफ़्रोन क्या होते हैं?

ख़ून किडनी में पहुंचता है, वेस्ट दूर होता है और ज़रूरत पड़ने पर नमक, पानी और मिनरल का स्तर एडजस्ट होता है. वेस्ट पेशाब में बदलता है और शरीर से बाहर निकल जाता है.

ये भी मुमकिन है कि किडनी अपने सिर्फ़ 10 फ़ीसदी स्तर पर काम कर रही है और शरीर इसके लक्षण भी न दे, ऐसे में कई बार किडनी के गंभीर इंफ़ेक्शन और फ़ेल होने से जुड़ी दिक्कतों के बारे में काफ़ी देर से पता चलता है.

हर किडनी में लाखों छोटे फ़िल्टर होते हैं जिन्हें नेफ़्रोन कहा जाता है. अगर ख़ून किडनी में जाना बंद हो जाता है, तो उसका वो हिस्सा काम करना बंद कर सकता है. इससे किडनी फ़ेल हो सकती है.

किडनी ट्रांसप्लांट क्या और कैसे होता है?

किडनी ट्रांसप्लांट उस प्रक्रिया का नाम है जिसमें एक व्यक्ति के शरीर से किडनी निकालकर दूसरे के शरीर में डाली जाती है, जिसकी किडनी ने काम बंद कर दिया हो या ख़राब होने वाली है.

आम तौर पर क्रोनिक किडनी डिसीज़ या किडनी फ़ेल होती है तो ट्रांसप्लांट की ज़रूरत होती है. अरुण जेटली के मामले में ये ऑपरेशन करने से पहले डायलिसिस हो रहा है.

ये दरअसल ख़ून साफ़ करने से जुड़ी प्रक्रिया है जो ट्रांसप्लांट से पहले ज़रूरी होती है. हालांकि, इसमें दिक्कतें और वक़्त ज़रूर लगता है.

लेकिन क्या ये प्रक्रिया इतनी आसान है, जितना उसके बारे में बात करने में लगता है. जवाब है, नहीं.

लेकिन आसान नहीं पूरी प्रक्रिया

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के नेफ़्रोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ डी एस राणा के मुताबिक इस प्रक्रिया में सबसे ज़रूरी है ऐसे व्यक्ति का होना, जिसकी दोनों किडनी पूरी तरह सेहतमंद हों. यही व्यक्ति डोनर होता है.

उन्होंने कहा, ”आम तौर पर किडनी दान करने वाला व्यक्ति जान पहचान का होता है लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं है. इसके अलावा ये उतना ही ज़रूरी है कि वो स्वेच्छा से ऐसा कर रहा हो.”

किडनी ट्रांसप्लांट में ख़ून और ब्लड ग्रुप का क्या महत्व होता है, डॉ राणा ने बताया, ”मरीज़ और डोनर का ब्लड ग्रुप एक हो, ये अच्छा है.”

”या फिर दान करने वाले व्यक्ति का ब्लड ग्रुप ओ होना चाहिए जिसे यूनिवर्सल डोनर ब्लड ग्रुप कहा जाता है. हालांकि, दोनों का ब्लड मैच न करने के बावजूद किडनी ट्रांसप्लांट हो सकता है.”

कितने घंटे का होता है ऑपरेशन?

”इसमें दो से चार घंटे लगते हैं और जैसे ही किडनी काम करने लगती है तो मरीज़ की रिकवरी शुरू हो जाती है. और डोनर को भी चार-पांच दिन बाद आम तौर पर डिस्चार्ज कर दिया जाता है.”

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लेकिन क्या किडनी बदलने के बाद मरीज़ सामान्य रह पाता है? डॉक्टर राणा ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया सामान्य नहीं है. इसमें आप एक शरीर से कोई अहम अंग निकालकर दूसरे शरीर में डालते हैं, तो ये जटिल तो है ही.

उन्होंने कहा, ”किडनी रिजेक्शन का ख़तरा हमेशा रहता है. किडनी बदलने के शुरुआती सौ दिनों में ख़तरे ज़्यादा होते हैं लेकिन बाद में भी ऐसा हो सकता है. किडनी ट्रांसप्लांट के एक साल के बाद भी कामयाब रहने की संभावनाएं 90 फ़ीसदी के क़रीब हैं.”

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