कारगिल : दबाव में आए देश को इन योद्धाओं ने दी ताकत

कारगिल युद्धदिल्ली। इन दिनों कश्‍मीर में हालात नाजुक हैं। पाकिस्तान की नापाक हरकतों से भारत के सामने कई तरह की मुश्किलें आ रही हैं। खुद पीएम नरेंद्र मोदी हालात पर नजर जमाए हुए हैं। इसी तरह 17 साल पहले जब कारगिल युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान की सेना भारत पर हावी होती दिखाई दी थी, तब भारतीय सेना ने इस स्थिति पर जिस तरह काबू पाया, वह वाकई काबिलेतारीफ था। 17 जून, 1999 को जब कारगिल युद्ध चरम पर था, तभी भारतीय सेना के सामने तीन ऐसी मुश्किलें आ गई थीं, जिनसे निपटना किसी के लिए भी आसान नहीं था। लेकिन देश के जाबाज पायलटों ने इससे निपटने हुए जीत की नई इबारत लिख दी।

कारगिल युद्ध की कहानी, वीरों की जुबानी

17 साल पहले हुए इस युद्ध के बारे में फ्लाइट लेफ्टिनेंट रहे श्रीपद टोकेकर और स्क्वाड्रन लीडर रहे डीके पटनायक बताते हैं, ‘हमारे सामने तीन बड़ी चुनौतियां थीं। हमें बॉर्डर क्रॉस नहीं करना था। बॉर्डर के आसपास देश के सैनिक भी थे। हवाई हमले के दौरान उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे, इसका ध्‍यान रखना था। लेकिन इन सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि पाकिस्तान के पास कुछ ऐसे अमेरिकी हथियार थे, जिसे हमारे विमान MiG-21 और एक Mi-17 को आसानी से निशाना बनाया जा सकता था।’

इससे निपटने के लिए इन जवानों ने जान की बाजी लगा दी। श्रीपद टोकेकर बताते हैं, ‘तब मैं पंजाब के आदमपुर एयरबेस पर तैनात था। हम जानते थे कि पाकिस्तानी एयरफोर्स वहीं आस-पास है, क्योंकि हमारे विमानों के रडार उनकी गतिविधियां पकड़ रहे थे। हमें कभी भी मुठभेड़ का मौका नहीं मिला। यह बेहद निराशाजनक अनुभव था।’

करगिल युद्ध के दौरान मुंथो ढालो पर स्थित महत्वपूर्ण पाकिस्तानी चौकी का पता लगाने और उस पर हमला करने वाले डीके पटनायक पहले पायलट थे। लद्दाख के बटालिक सेक्टर में भारतीय सरजमीं पर घुसपैठ करने वाली पाकिस्तानी सेना के लिए यह चौकी उनकी प्रशासनिक और लॉजिस्टिक बेस थी, करगिल युद्ध के दौरान पूरी पाकिस्तानी सेना के लिए यह रीढ़ के समान था। हथियारों को निशाना बनाने की मिराज- 2000 की कंप्यूटर असिस्टेड क्षमता के भरोसे स्क्वाड्रन लीडर डीके पटनायक जैसे वायुसेना अधिकारियों ने काफी ऊंचाई से सीधा गोता लगाया और पाकिस्तानी सेना की वार मशीनरी की कमर तोड़ दी।

इंडियन एयरफोर्स के दो विमानों MiG-21 और Mi-17 हेलीकॉप्टर को पाकिस्तानी सेना ने मार गिराया था, जिसमें पांच पायलट और सैनिक शहीद हो गए थे, इस हमले से एयरफोर्स को इलाके में उस वक्त अपनी रणनीति बदलनी पड़ी थी। लड़ाकू विमानों को पाकिस्तानी मिसाइलों के निशाने से बचने के लिए समुद्र तल से 33,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ना पड़ता था और उसी वक्त उन्हें बम बरसाने के लिए खतरनाक ढंग से सीधा गोता लगाना पड़ता था, पाकिस्तानी सैनिक इस दौरान भारतीय विमानों पर बदस्तूर गोली दागते रहते थे।

टोकेकर बताते हैं, ‘जैसे ही हम विमान के साथ गोता लगाते, वे लोग गोलियां चलाने लगते। हम जमीन से उठता धुंआ तो देख सकते थे। लेकिन यह समझना मुश्किल था कि हमला किस तरफ से हो रहा है। साथ ही एलओसी के करीब पहुंच चुकी भारतीय सेना पर भी कोई आफत गिराने से बचना था।’ इन सैनिकों ने मिलकर जिस तरह पाकिस्तान की कई अहम चौकियों को नेस्तनाबूत कर दिया था। उससे भारत को कारगिल पर फतह हासिल करने में काफी मदद मिली थी। जुलाई के आखिरी हफ्ते में कारगिल युद्ध खत्म हुआ, तो भारतीय सेना ने जीत का जश्‍न भी मनाया।

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