डांस की इस शानदार कला के ‘कामुक’ लगने पर सरकार ने किया बैन, दुनिया में हो रही थू-थू

डांसतेहरान। ईरान सरकार ने कसम खा ली है कि वो हर उस चीज पर बैन लगा देगी जो किसी भी प्रकार के मनोरंजन से जुड़ा हो। इसी क्रम में म्यूजिक और मेकअप के बाद ईरान सरकार ने ‘जुम्बा’ को बैन कर दिया है। जुम्बा कोलंबिया में उपजा एक डांस फॉर्म है। इसे सबसे उम्दा डांस फॉर्म या एक्सरसाइज का खिताब हासिल है।

ईरान सरकार के मुताबिक ‘जुम्बा या संगीत पर कोई भी गतिविधि करना, इस्लाम के कानून का उल्लंघन है।’ सरकार का मानना है कि यह अपने लिए खुशी तलाशने की कोशिश है जो कि हराम है। वो जुम्बा के दूसरे असर से भी परेशान हैं। उनका मानना है कि जुम्बा के वीडियो देखने से पुरुषों पर भी असर पड़ रहा है। इसलिए कुछ वीडियो

पॉर्न की तर्ज पर बंद

अगर इजराइल के एक अखबार की मानें तो, इसके पीछे जुम्बा की ‘कामुकता’ है। क्योंकि इसे करते समय लोगों का शरीर हिलता है। 2013 में इजराइल की एक कमेटी ने भी जुम्बा को बैन किया था।

फिलहाल बैन के इस फैसले से ईरान के जुम्बा टीचर और प्रशंसक काफी निराश हैं। ईरान में तमाम बैन के बाद कसरत के मौके पहले से ही बहुत कम हैं। और जुम्बा यहां के बहुत सारे शहरों में अपनी खास जगह बना चुका था। तेहरान की एक टीचर ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि वो अपनी क्लास चलाती रहेंगी, बस ‘जुम्बा’ का नाम बदल देंगी। उन्होंने कहा कि वो रुकेंगी नहीं।

ईरान में बहुत कुछ बैन

ईरान में पति-पत्नी हाथों में हाथ डालकर नहीं चल सकते हैं। क्योंकि इससे युवाओं पर गलत असर पड़ता है। अगर नजदीकी पारिवारिक रिश्ते नहीं हैं तो आप एक-दूसरे को छू भी नहीं सकते। मीटिंग में हाथ नहीं मिला सकते।

पुरुष स्लीवलेस शर्ट नहीं पहन सकते। और औरतें तो कुछ भी ऐसा नहीं पहन सकती जिससे शरीर का कोई भी हिस्सा खुला रह जाए। यहां तक कि आप ऐसे कपड़े भी नहीं पहन सकते जिससे आपका बॉडी शेप पता चले।

क्‍या कुछ और बैन

  • औरतों के लिए ज़्यादा मेकअप मना है और पुरुषों के लिए तो बैन ही है।
  • बिना अनुमति सार्वजनिक तौर पर संगीत बजाना मना है।
  • रमज़ान के पाक महीने में सूरज ढलने से पहले सार्वजनिक तौर पर कुछ खाया-पिया नहीं जा सकता।

इतनी बंदिशों के बाद इंसान सांस ही ले ले वही बहुत है। पहली बात तो ये कि खुद को खुशी देने में बुराई क्या है, ये समझ नहीं आता। जैसा कि ईरान के जिम्मेदारों का मानना है। फिर अगर किसी चीज से पुरुषों पर असर पड़ रहा है तो इसमें औरतों का क्या कुसूर। उन्हें क्यों अपनी ख्वाहिशों को छोड़ना पड़े। तीसरी बात सब कुछ अगर सरकारें तय करती रहीं तो इंसानी हक़ की बात कौन करेगा।

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