कानून अफ्स्पा : एक बार से विवादों में आया अफ्स्पा, जानें क्या है ये कानून !…

सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) एक बार फिर चर्चा में है। केंद्र सरकार ने असम से अफ्स्पा हटाने का फैसला लिया है। यह कानून इसी साल अगस्त में पूरी तरह से हटा लिया जाएगा।

इसके लिए असम से सेना को वापसी के लिए तैयारियां शुरू करने का निर्देश दिया गया है। लगभग तीन दशकों बाद इस कानून को असम से हटाया जा रहा है।

असम में 27 नवंबर 1990 को अफ्स्पा को उस वक्त लागू किया गया था, जब उल्फा उग्रवाद अपने चरम पर था। पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित करने के बाद अफ्स्पा लागू हुआ था।

कुछ सालों में कई सारे जिलों में स्थिति सुधरने पर सेना को धीरे-धीरे वहां से हटा दिया गया। पुलिस और पैरामिलिट्री ने सेना की जगह ले ली।

पिछले साल सितंबर में केंद्र ने राज्य को अफ्स्पा को बढ़ाने या हटाने के अधिकार दिया था। जिसके बाद प्रदेश सरकार ने दो बार इस कानून को आगे बढ़ाया, जिसमें एनआरसी की प्रक्रिया का हवाला दिया गया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एनआरसी की प्रक्रिया 30 जुलाई तक पूरी हो जाएगी।

क्या है अफ्स्पा
सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम यानी अफस्पा देश की संसद द्वारा 1958 में पारित किया गया एक कानून है, जिसके तहत देश के सुरक्षाबलों को संबंधित क्षेत्र में कार्रवाई संबंधी विशेषाधिकार प्रदान किए जाते हैं।

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इसके द्वारा मिले विशेषाधिकारों में मुख्यत: सुरक्षाबलों को बिना अनुमति किसी भी स्थान की तलाशी लेने और खतरे की स्थिति में उसे नष्ट करने, बिना अनुमति किसी की गिरफ्तारी करने और यहां तक कि कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली चलाने जैसे अधिकार प्राप्त हैं।

किसी भी क्षेत्र में यदि उग्रवादी तत्वों की अधिक सक्रियता महसूस होने लगती है, तब संबंधित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र द्वारा उस क्षेत्र को ‘अशांत’ घोषित कर वहां अफस्पा लागू किया जाता है तथा केंद्रीय सुरक्षाबलों की तैनाती की जाती है।

होता रहा है विरोध-

अफ्स्पा का मानवाधिकार संगठनों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। मणिपुर में वर्ष 2000 के नवंबर में असम राइफल्स के जवानों पर दस निर्दोष लोगों को मारने का आरोप लगा था। अफस्पा खत्म करने की मांग के साथ मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गईं थीं, जो सोलह वर्ष बाद 2015 में समाप्त हुआ।

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