ये कश्‍मीर में तैनात एक सिपाही का खुला खत है… आपको जरूर पढ़ना चाहिए

कश्‍मीरमैं पैरामिलिट्री फोर्स में सेवारत हूं और पिछले चार साल से कश्मीर में तैनात हूं, इसी महीने मेरी नौकरी को दस साल भी पूरे हो गए हैं और मुझे करीब 28 हजार रुपये तनख्वाह मिलती है। अगर इस दौरान छुट्टी पर गया तो तनख्वाह भी कट जाती है, तो सिर्फ 22 हजार रुपये ही मिलेंगे।

मेरा परिवार किराये के मकान में रहता है, जिसके लिये मैं हर महीने उन्हें 5000 रुपये चुकाता हूं, दो बच्चे हैं, जिनकी स्कूल फीस, ट्यूशन और बाकी चीजों में करीब 6 हजार रुपये खर्च हो जाते है, घर में राशन और गैस वगैरह पर हर महीने करीब 7 हजार रुपये खर्च होते है। यानि कुल मिलाकर मेरे घर का मोटा-मोटा खर्च 18 हजार रुपये है।

इसके बाद मेरा और परिवार का मोबाइल खर्च करीब 1500 रुपये है, इसके अलावा अगर मैं हर तीन महीने के बाद घर छुट्टी पर लौटता हूं तो दोनों तरफ का किराया और बाकी खर्च जोड़कर करीब 10 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं, अगर परिवार का हर सदस्य स्वस्थ रहे यानि डॉक्टर का चक्कर नहीं लगाता है तो करीब तीन हजार महीने में बच जाते हैं नहीं तो वो भी खत्म।

मैं कश्मीर में तैनात हूं इस वजह से मेरे घर पर ना होने के कारण मेरे बच्चों को कोई सुरक्षा नहीं मिलती है, मैं उनसे केवल बात कर पाता हूं।

मेरी गैर-मौजूदगी में उनके पास ऐसा कोई रोल मॉडल नहीं होता, जो उन्हें अच्छी बातें सिखा सकें, हां, अगर आस-पास कोई नशा करने वाला व्यक्ति है तो वो जल्दी ही उनकी नकल करने लग जाते हैं।

हमारे परिवार की भी ठीक ढ़ंग से सुरक्षा नहीं हो पाती है, सरेराह, भरे बाजार कोई भी उनसे कुछ भी कहकर चला जाता है।

इसके बाद पुलिस से शिकायत करने जाओ तो वो कहती है कि परिवार वालों को कहो कि सुरक्षित तरीके से रहें, अगर एफआईआर दर्ज करा दिया तो उल्टा दबंगों और नेताओं का दबाव सहो।

इसके साथ ही हमारी संपत्ति भी सुरक्षित नहीं है जिसके आगे या अगल-बगल है, वही कब्जा करने लगता है, शिकायत करो तो पता चलता है कि वो किसी नेता का रिश्तेदार है, मामले में कुछ नहीं हो पाएगा, केवल आश्वासन मिलता है, इसके सिवाय कुछ नहीं।

साथ ही हमारी जान का भी कुछ पता नहीं, कभी भी जा सकती है।

हम भी पढ़ें-लिखे हैं, घर पर रहकर अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे से कर सकते हैं, आजीविका अच्छे से चला सकते हैं, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा घर में ही दे सकते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ सकते हैं, अपनी संपत्ति का रख-रखाव कर सकते हैं, अपने परिवार के सदस्यों मां, बहन और बीवी की सुरक्षा खुद कर सकते हैं, हमारा शरीर तो पूरा साल चौबीसों घंटे ड्यूटी पर ही रहता है, लेकिन इस घिनौनी दुनिया से इतना डर लगता है कि दो-दो दिनों तक नींद ही नहीं आती है।

लोग हमारे लिए सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन असल में होता क्या है इसका एक ताजा उदाहरण देता हूं, मैं पिछले 10 सालों से नौकरी कर रहा हूं, मेरे घर तक अभी तक ना तो बिजली पहुंची है और न ही पक्की सड़क, उसी ग्राम पंचायत का दूसरा शख्स है जिसका साल 2013-14 में सिविल सेवा में चयन हो गया। सरकार ने 3 महीने के भीतर उसके घर तक बिजली और पक्की सड़क बनवा दी जबकि मैंने संबंधित विभागों से कई बार कहा लेकिन इस दिशा में कुछ भी काम नहीं हुआ।

बताइये हमारी क्या गलती है और हमने किस गरीब का पैसा खाया है, हमको किसी गरीब का पेट काटकर सरकार सैलरी न दे लेकिन, देशभक्त का चोला पहनाकर हमारे स्वाभिमान और हमारे परिवार को लज्जित भी मत करो।

नोट:- सुुरक्षाकारणों से हम उस सिपाही का नाम नहीं दे सकते

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