कलियुग के श्रवण कुमार माँ को करवाया चारो धाम की यात्रा

download (13)लखनऊ। कलियुग के श्रवण कुमार जो अपनी मां को अपना ईश्वर मानते हैं। तभी तो पिता की मृत्यु के बाद इस संन्यासी ने मातृ भक्ति की ऐसी मिसाल पेश की जिसे देख हर मां का हृदय गद-गद हो उठता है। ब्रह्मचारी कैलाश गिरि ने न केवल सारे तीर्थ, बल्कि चार धाम की यात्रा भी मां को कंधे पर कांवड़ में बैठाकर पूरी करा दी है। इन दिनों वह आज कल मथुरा-वृंदावन की यात्रा कर रहे हैं।
ये एक ऐसे पुत्र की कहानी है जिसकी अभिलाषा हर मां करती है। तभी तो तन पर भगवा धोती और कंधे पर बड़ा सा कांवड़ लिए ब्रह्मïचारी कैलाश गिरि जिस राह से गुजरते हैं, लोगों का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। 46 वर्षीय कैलाश गिरि यूं तो संन्यासी हैं, मगर मां के प्रति अटूट श्रद्धा के चलते उन्होंने ईश्वर की पूजा के बजाय मां की सेवा को अपना धर्म बना लिया। पिछले 20 सालों में वह मां कीर्ति देवी को देश के सभी धार्मिक स्थलों के दर्शन करा चुके हैं। चार धाम की यात्रा भी उन्होंने मां को कंधे पर कांवड़ में बैठाकर ही कराया। ब्रह्मचारी कैलाश गिरि बताते हैं कि मांता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण संन्यासी होने के बाद भी उन्होंने माताजी का साथ नहीं छोड़ा। आज वह आगरा ग्वालियर हाईवे से होकर गुजरे तो लोगों ने फूल मालाओं से उनका अभिनंदन भी किया।
पिता की मौत के बाद निकले घर से
मूल रूप से जबलपुर म.प्र. के संकटमोचन धाम हिनौता पोस्ट पिनसी थाना बर्गी निवासी कैलाश गिरि अपने पिता छिकौड़ी श्री पाल के इकलौते बेटे हैं। नेत्रहीन मां कीर्ति देवी भी अपने पुत्र की भक्ति पर गदगद नजर आती हैं । 92 साल की कीर्ति देवी ने बताया कि बीस साल हो गए घर छोड़े, तब से वह यात्रा ही कर रही हैं। बताती हैं एक बार बीमार होने पर कीर्ति देवी ने मन्नत मांगी थी। इसके बाद पहली बार पुत्र ने ठीक होने पर चार धाम यात्रा करा दी ।
दिन में चलते सिर्फ तीन किमी
कैलाश गिरि दिन में गर्मी की वजह से मात्र तीन किलोमीटर चलते हैं और कांवड़ रोककर खुद और मां को आराम देते हैं। कांवड़ में एक ओर मां है तो दूसरे पलड़े में संतुलन के लिए उन्होंने खाने पीने का सामान और लोगों द्वारा दिया दान रखा है । उनका दावा है कि अब तक करीब तीस हजार किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं।

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