बेहद खास है ये करवाचौथ, 100 सालों में बनता है ऐसा योग

हिंदू सनातन पद्धति में करवाचौथ सुहागिनों का महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं।

सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है।

आज यानी 19 अक्टूबर 2016 के दिन चतुर्थी तिथि है। इस दिन सूर्योदय से देर रात्रि तक,चन्द्रोदय रात्रि 8:49 है। इस दिन योग-गजकेशरी योग, सर्वार्थसिद्धी योग, शुभ योग, रोहिणी नक्षत्र, चन्द्रमा अपनी राशि वृषभ में रहेगा।

करवाचौथ

कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी को चन्द्रोदय व्यापिनी करवा चन्द्रमा अपने स्वनक्षत्र रोहिणी में रहेगा। चन्द्रमा की 27 पत्नियां है, जिनमें सबसे प्रिय पत्नि रोहिणी हैं।

अतः करवा चौथ के दिन रोहिणी नक्षत्र होने यह पर्व विशेष फलदायक रहेगा व चन्द्रमा अपनी सर्वोच्च राशि वृषभ के 12 अंश पर होंगे।

ऐसे शुभ समय में महिलाएं की अखण्ड सुहाग की कामना शीघ्र पूर्ण होगी। चन्द्रमा को अमृतकारक ग्रह बताया गया है। अतः इस काल में महिलाओं की अखण्ड सौभाग्य की कामना अवश्य ही पूर्ण होगी।

विवाहित महिलाएं पति की लम्बी उम्र की कामना से इस व्रत को करेगीं कुंआरी कन्याएं उत्तम पति की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती हैं।

सनातन पद्धति में करवा चौथ सुहागिन महिलाऔ कों महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत को नियम पुर्वक करती हैं।

सुहागिन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन की चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन, न हो तो पूर्वविद्धा लेना चाहिए।

स्त्रियां इस व्रत को पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुरूप रखा जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है। सार तो सभी का एक होता है पति की दीर्घायु की कामना।

करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से चन्द्रोदय तक निर्जला व्रत करें। चन्द्रोदय होने के बाद पहले चन्द्रमा का पूजन करके गणेश, शिव, पार्वती का पूजा, अर्चना करें।

फिर अपने पति परमेश्वर का पूजन करें व आरती करके पति के साथ चन्द्रमा का दर्शन करके पति के हाथो से जल ग्रहण करके व्रत का समापन करें।

व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।  शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी।

सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है।

दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है।

करवाचौथ

वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी।

वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है।

यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।  इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

 

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