ऑनलाइन कंपनियों ने एक झटके में बदली रणनीति, ढूंढते रह जाएंगे डिस्काउंट
नई दिल्ली। ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों को ई कामर्स इंडस्ट्री ने 2013 से 2015 तक तरह-तरह के डिस्काउंट दिए। असल में इन्हीं डिस्काउंट्स और ऑफर पर ही भारत की ई कामर्स इंडस्ट्री चल रही है। फ्लिपकार्ट में हाल ही में 1.4 बिलियन डॉलर के निवेश की उम्मीद के बाद लग रहा था कि एक बार फिर से ऑफर और डिस्काउंट्स की बहार आ सकती है।
लेकिन अब भारतीय ऑनलाइन रिटेलर्स नए दौर में उसी रास्ते पर जाना नहीं चाहेंगे। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स-उद्यमियों और विशेषज्ञों के मुताबिक इसकी वजह यह है कि इंडस्ट्री की तरक्की की अब तक की राह बड़ी पूंजी से बन रही है।
फॉरेस्टर रिसर्च के विशेषज्ञ सतीश मीणा कहते हैं, अब ई-कॉमर्स इंडस्ट्री में पहले जैसी डिस्काउंट वॉर की आशंका नहीं है। यह किसी के लिए फायदेमंद नहीं है। कंपनियां अब ज्यादा कैटिगरी ऐड करने और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करेंगी।
डिस्काउंट बेशक होंगे, लेकिन 2014 जैसे नहीं। लोकल ई-कॉमर्स इंडस्ट्री लंबे समय से अपनी डिस्काउंटिंग स्ट्रैटेजी पर काम कर रही है। कैशबैक और कूपन कंपनी कैशकरो की फाउंडर स्वाति भार्गव के मुताबिक, ऑफर डिस्काउंट में बदलाव आया है।
मिसाल के लिए 50 फीसदी से ज्यादा डिस्काउंट वाले प्रॉडक्ट्स की संख्या घटी है जबकि ऐसे अनगिनत प्रॉडक्ट्स हैं जिन पर 30 फीसदी का डिस्काउंट चल रहा है।
फैशन पोर्टल वूनिक के को-फाउंडर सुजायत अली के मुताबिक, ई-कॉमर्स स्पेस में डिस्काउंट पर फोकस घटा है और अब हाई क्वॉलिटी ग्रॉस मर्चेंडाइजिंग वॉल्यूम पर शिफ्ट हो गया है। इससे उनको बेहतर फायदा और ग्राहकों को बेहतर अनुभव मिलता है। उम्मीद है कि अमेजन और अलीबाबा जैसी विदेशी कंपनियां भी रणनीति में बदलाव करेंगी।
ईवाई के पार्टनर, कन्ज्यूमर प्रॉडक्ट्स ऐंड रिटेल, पिनाकी रंजन मिश्रा कहते हैं कि डिस्काउंटिंग स्ट्रैटेजी में आखिरकार बदलाव लाना ही होगा क्योंकि जब आप डिस्काउंट वापस लेते हैं, कस्टमर्स गायब हो जाते हैं।
मुझे लगता है कि वे उस स्पेस में जा सकते हैं, जहां कस्टमर्स लंबे समय तक टिक सकते हैं। यह प्राइवेट लेबल या फिर बेहतर डिलिवरी और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट के जरिए किया जा सकता है। रिटेल बिजनेस डिस्काउंट और प्रमोशन से चलता है। लेकिन सेल्स में बढ़ावा सिर्फ इनसे ही नहीं मिलता।