चीन का जवाब, एनपीटी पर साइन करो या एनएसजी भूल जाओ

एनपीटी पर चीननई दिल्ली। लोकसभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर न करने वाले बयान से चीन भड़क उठा है। एनपीटी पर चीन ने कहा है कि जब तक भारत इस संधि पर साइन नहीं करता, उसे एनएसजी का सदस्य नहीं बनने दिया जाएगा।

एनपीटी पर चीन का जवाब

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि एनएसजी में शामिल होने के लिए चीन का हमेशा स्पष्ट रुख रहा है। एनएसजी में एंट्री के लिए चीन अकेले नियम-कानून नहीं बनाता लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय यह मानता है कि एनपीटी पर दस्तखत करने वाले देश को ही एनएसजी का हिस्सा बनाया जाए। कोई भी देश खुद को एनपीटी से दूर नहीं रख सकता।

चीन एनपीटी पर दस्तखत को ढाल बना कर भारत का लगातार विरोध कर रहा है। चीन को डर है कि अगर भारत को एनएसजी में इंट्री मिल जाती है तो एशिया महाद्वीप में उसका दबदबा काम होगा।

पिछले दिनों भारत एनएसजी में चीन के अड़ंगे की वजह से ही शामिल नहीं हो पाया। इस मामले में अमेरिका समेत ज्यादातर देशों ने भारत का समर्थन किया था लेकिन एनएसजी में शामिल होने के लिए सभी सदस्य देशों का समर्थन जरूरी है।

फिलहाल एनएसजी में इंट्री के लिए भारत के लिए अभी दरवाजे बंद नहीं हुए हैं। 2008 में हुए परमाणु समझौते की वजह से भारत को एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से छूट मिली हुई है। लेकिन जब तक चीन अपने इस रुख पर कायम रहेगा, भारत का इस एलीट ग्रुप में पहुंचना मुश्किल होगा।

NPT आखिर है क्या?

एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी। अब तक 187 देशों ने इस पर साइन किए हैं। इस पर साइन करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। हालांकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

इस पर साइन नहीं करने वालों में भारत, पाकिस्तान और इस्राइल जैसे देश शामिल हैं। उत्तर कोरिया इससे पहले ही अलग हो चुका है। इस संधि पर साइन नहीं करने वाले देशों का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया है और बाकी देशों पर अप्रसार संधि थोप रहे हैं।

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