एक बूंद कि प्यास बुझाने के लिए 5 से 8 किमी का सफ़र तय करना होता हैं यहां के गांव निवासियों को…

PLACE – टिहरी

 रिपोर्ट – बलवंत रावत

 

विकास का प्रतीक कहे जाने वाले टिहरी डैम की झील दिल्ली और यूपी की पानी की जरूरतों को पूरा करती है लेकिन टिहरी झील के आसपास के गांव आज भी प्यासे हैं।आलम ये है कि टिहरी झील से सटे जाखणीधार क्षेत्र के गांवों के लोग तो आज भी प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर है 5 से 8 किमी दूर पानी ढोने को मजबूर है।

 

 

 

 

 

बतादें कि 42 वर्ग किमी में फैली टिहरी डैम की झील का पानी टिहरी झील से सटे आसपास के गांवों के ग्रामीणों की ही प्यास नहीं बुझा पा रहा है। वहीं टिहरी झील से सटे जाखणीधार क्षेत्र के अलमस,पेटव,नवाकोट,स्वाड़ी,पालकोट,अंजनीसैंण सहित जामनीखाल के ग्रामीण पानी के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों और हैंडपंप पर निर्भर हैं।

 

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देखा जाए तो  जहां स्कूली बच्चे स्कूल जाने से पहले पानी भरते है तो स्कूल से आने के बाद भी उन्हें पानी ढोने जाना पड़ता है तो महिलाओं का हाल ये है कि उनके दिन का आधे से ज्यादा समय पानी लाने ले जाने में ही जाता है।

 

जाखणीधार क्षेत्र के लिए वर्ष 2007-08 में स्वीकृत कोश्यारताल पेयजल पम्पिंग योजना का निर्माण कार्य आज तक पूरा नहीं हो पाया है अभी तक योजना का फर्स्ट फेज ही पूरा हो पाया हैं। जहां जल संस्थान के अधिकारी से इस बाबत पूछा गया तो उनका कहना है कि योजना पूरी नहीं होने के चलते पेयजल संकट बना है और कुछ क्षेत्र देवप्रयाग में पड़ता है वहां के अधिकारी से बात कर इसका समाधान किया जाएगा।

दरअसल इसे दिया तले अंधेरा ही कहा जाएगा कि टिहरी डैम की इतनी बड़ी झील से अन्य राज्यों की पेयजल आपूर्ति पूरी होती है वहीं झील से सटे गांव के लोग आज भी प्यासे है और पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर हैं।

 

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