एक टाइम था जब गंगा से भी ज़्यादा गन्दी थी थेम्स नदी, फिर ऐसे हुई साफ़ !…

इंग्लैंड की मेजबानी में 20 साल बाद क्रिकेट विश्व कप खेला जा रहा है. भारत और इंग्लैंड की टीमें इस विश्व कप में सबसे मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं. हालांकि दोनों देशों में बहने वाली नदियां एक दूसरे से काफी अलग हैं.

एक तरफ जहां भारत की गंगा दिन-ब-दिन मैली होती जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ एक जमाने में मृत घोषित हो चुकी इंग्लैंड की थेम्स नदी ने अपने अस्तित्व को बचाकर बेहतरीन मिसाल पेश की है.

 

खतरनाक बीमारियों का गढ़ थी थेम्स

लंदन के बीचों-बीच बहती थेम्स नदी का नाम आज दुनिया की सबसे खूबसूरत नदियों में शुमार है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब यह नदी भयकंर बीमारियों का गढ़ हुआ करती थी.

वर्ष 1858 में हालात यहां तक पहुंच गए थे कि इससे निकली बदबू की वजह से संसद की कार्यवाही रोकनी पड़ी थी.

 

ऐसे बचाया नदी का अस्तित्व

कूड़े और कचरे के ढेर से भरी थेम्स नदी एक जमाने में पूरी तरह सूख चुकी थी. सरकार ने भी थेम्स को मृत घोषित कर दिया था.

इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सीवेज ढांचे में भारी निवेश किया और प्रदूषण से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए. इस तरह सरकार के प्रयास और लोगों की जागरुकता से मृत थेम्स को एक नया जीवन मिला.

 

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गंगा की स्वच्छता पर सवाल

थेम्स नदी के उलट भारत की गंगा पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, इसके बावजूद इसकी स्वच्छता पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

80 के दशक से सरकारें गंगा की सफाई के लिए करोड़ों रुपए बहा चुकी है. मगर कुछ नहीं बदला. ज्यादातर शहरों और कस्बों में कचरा हटाने की सुविधा ही नहीं है.

 

कई बड़े शहरों की प्यास बुझा रही गंगा

हालात इतने बदतर हैं कि टॉयलेट का गंदा पानी और औद्योगिक कचरा सीधे नदियों में जा रहा है. ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, बक्सर, पटना, भागलपुल, मुर्शीदाबाद और कोलकाता जैसे कई बड़े शहरों की प्यास बुझाने वाली गंगा को स्वच्छ करने के लिए न सिर्फ सरकार को कड़े नियम बनाने होंगे, बल्कि लोगों को भी जागरुक होना पड़ेगा.

 

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