उत्तराखंड में दलितों पर जुल्म की वारदातें , ये हमले पिछले 3 साल में बढ़े हैं !

उत्तराखंड में हाल ही में हुई दलित की हत्या को लेकर पूरी देवभूमि शर्मसार है. टिहरी जिले के नैनबाग के युवक जितेंद्र दास को इतना मारा गया कि उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई. मामला 26 अप्रैल को एक शादी समारोह में दलित का सवर्णो के बीच कुर्सी में बैठकर खाने के विवाद से शुरू हुआ था.

दलित युवक की बेरहमी से मारपीट करने और उसकी हत्या के बाद पुलिस के द्वारा कुछ लोगों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन हत्या के बाद जब पूरा गांव सड़क पर सरकार से गुहार लगाने लगा उसके बाद ही पुलिस प्रशासन हरकत में आया.

प्रशासन के द्वारा लगातार एससी/एसटी के संरक्षण को लेकर भले ही लाख दावे और अच्छी कानून-व्यवस्था की बात की जाती हो, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले तीन सालों में ऐसे मामलों में इजाफा हुआ है.

2016 से 2018 तक के तीन सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो अनुसूचित जाति और जनजाति के मामलों पर जातिसूचक शब्दों के तहत मामलों में इजाफा हुआ है. हालांकि दलितों के साथ हत्या, बलात्कार, गंभीर चोट और लूट जैसे मामलों पर कमी आई है.

2016 में दलितों की हत्या के 7, 2017  में 5 और 2018 में 6 मामले दर्ज किए गए. वहीं,  2016 में दलितों के साथ अपहरण का एक मामला दर्ज किया गया. वहीं, 2017 में ऐसा कोई भी मामला सामने नहीं आया. 2018 में 3 मामले दर्ज किए गए. साथ ही 2016 में दलितों के साथ बलात्कार के 9 मामले, 2017 में 16 और 2018 में 13 मामले दर्ज किए गए.

“टेम्परिंग विवाद के बाद अब सुधर चुके हैं कंगारू खिलाड़ी”- ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड

दलितों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल पर पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामलों में भी इजाफा देखा गया है. साल 2016 में दलितों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों के प्रयोग करने के 17 मामले सामने आए थे. वहीं, 2017 में जातिसूचक शब्दों के प्रयोग करने पर 15 और 2018 में 21 मामले सामने आए.

राज्य में पुलिस व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं. आए दिन प्रदेश में बढ़ रहे दलित अत्याचार के मामलों पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी चिंता जताई है और कहा कि ऐसी घटनाएं मानवता को शर्मसार करने वाली हैं.

ऐसी घटनाएं दोबारा ना हो इसके लिए सभी लोगो को जागरूक होना पड़ेगा.  खासतौर पर देश के बुद्धिजीवी वर्ग को सभी में जागरूकता फैलानी चाहिए जिससे इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य डॉ. स्वराज विद्वान का आरोप है कि पुलिस इन मामलों में अपनी पीठ थपथपा रही है और कह रही है कि दलित उत्पीड़न के मामले कम हुए हैं.

पुलिस की मानें तो 2016-17 के मुकाबले 2018 में मामलों में कमी आई है, लेकिन हकीकत उलट हैं. आंकड़े तस्दीक करते हैं कि अन्य अपराधों की मिलीजुली स्थिति है, लेकिन जातिसूचक शब्दों के प्रयोग के मामलों में दलित प्रताड़ना में इजाफा हुआ है.

 

LIVE TV