भारत के ‘डोनाल्ड ट्रंप’ हैं रामनाथ कोविंद, की थी मुस्लिमों और ईसाईयों पर ‘बैन’ की वकालत

नई दिल्ली: सारे  कइस्लाम-और-क्रिश्चियनिटीयासों के बीच बीजेपी की संसदीय दल की बैठक में एक ऐसे नाम की घोषणा की गई. जिसका पहले किसी को अनुमान नहीं था. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दिया. रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा के बाद कहा जा रहा है कि बीजेपी ने एक दलित का नाम आगे करके सभी पार्टियों को मात दे दी है. इन सबके बीच रामनाथ कोविंद का एक बयान चर्चा में आ गया है. जिसमे उन्होंने कहा कि इस्लाम और क्रिश्चियनिटी भारत के लिए बाहरी धर्म हैं’.

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दरअसल रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल बनने से पहले बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता भी रह चुके हैं. 2009 में यूपीए सरकार गठित रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने सरकारी नौकरियों में मुसलमानों को 10 फीसदी और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी.

सिफारिश में कहा कि मुसलमान और ईसाई बन गए दलितों को भी अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए. फिलहाल हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के दलितों को ही अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ मिलता है.

बीजेपी अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर आरक्षण देने के हमेशा खिलाफ रही है. इस वजह से 2010 में बतौर प्रवक्ता रामनाथ कोविंद ने रंगनाथ मिश्रा की सारी सिफारिशों को खारिज करने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि इस्लाम और क्रिश्चियनिटी भारत के लिए बाहरी धर्म हैं’. इसलिए इन समुदाय के लोगो नौकरियों, शिक्षा और चुनावों में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए.

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रामनाथ कोविंद को एक दलित चेहरे के बतौर पेश किया जा रहा है और संभव है कि देश के अगले राष्ट्रपति वे ही बने. अब देखना यह है कि क्या राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर चुने जाने के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों को लेकर उनका क्या नजरिया होता हैं.

 

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