हिंसा के कारण कश्मीर के अखबार बंदी की कगार पर

श्रीनगर। कश्मीर घाटी में जुलाई से बंद और निरंतर जारी तनाव और अशांति के चलते यहां प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों को गंभीर आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अशांति के कारण समाचार पत्रों की विज्ञापनों से होने वाली कमाई बंद हो गई है।

अंग्रेजी के एक समाचार पत्र ‘कश्मीर ऑब्जर्वर’ ने विज्ञापनों से होने वाली कमाई में काफी कमी आने के कारण अपना डिजिटल संस्करण शुरू करके वर्चुअल जगत में अपनी पहुंच बढ़ाने का फैसला किया है।

‘कश्मीर ऑब्जर्वर’ के संपादक सज्जाद हैदर ने आईएएनएस को बताया, “कश्मीर में अशांति का एक और दौर चल रहा है, जिसे शुरू हुए पांच महीने हो चुके हैं। घाटी में मौजूद मीडिया घरानों को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि बाजार से विज्ञापन नहीं मिल रहे।”

हैदर ने कहा, “छपाई की लागत कम करने के लिए अब हम अपने संसाधानों का बड़ा हिस्सा डिजिटाइजेशन में लगा रहे हैं।”

पिछले पांच महीनों से घाटी में व्यापार लगभग बंद हैं, इसलिए छोटे-बड़े सभी उद्यम संस्थान विज्ञापनों समेत अपने खर्च में कटौती कर रहे हैं।

घाटी में पर्यटन के मौसम गर्मियों के दौरान लगभग पूरे समय बंद रहे एक होटल मालिक ने कहा, “हम अपने कर्मचारियों के वेतन भी नहीं दे पा रहे हैं। जब तक हमारे व्यापार में सुधार नहीं होता, हम विज्ञापनों का खर्च नहीं उठा सकते।”

आर्थिक परेशानी

सरकार ने भी समाचार पत्रों में दैनिक विज्ञापन देने कम कर दिए हैं, क्योंकि आठ जुलाई को आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से यहां सभी कुछ थम-सा गया है।

समाचार पत्र ‘कश्मीर इमेजिज’ के संपादक बशीर मंजर ने कहा कि घाटी में पिछले पांच महीनों से विकास का बेहद कम या यूं कहें कि ना के बराबर काम हुआ है, इसलिए सरकार के पास भी प्रचार के लिए कुछ नहीं है।

मंजर ने आईएएनएस को बताया, “ज्यादातर विज्ञापन विकास कार्यो के होते हैं और जब सभी कुछ थमा हुआ है, तो हमारे कोई भी मांग रखने का कोई औचित्य नहीं है।”

उन्होंने साथ ही कहा कि सरकार उनकी पुरानी बकाया राशि का भी भुगतान नहीं कर रही, जिसके कारण उनकी समस्या और बढ़ गई है।

मंजर ने हालांकि कमाई के किसी अन्य जरिए के बारे में अभी नहीं सोचा है, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि जो हो रहा है (केवल प्रिंट संस्करण की कमाई पर भरोसा करना) केवल उससे हम गुजारा तक नहीं कर सकते।

हैदर ने भी इस बात पर सहमति जताते हुए कहा कि केवल प्रिंट संस्करण के जरिए प्रसार संख्या बनाए रखना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है, जिस पर बने रहना स्थानीय समाचार पत्रों के लिए काफी मुश्किल है।

उन्होंने कहा, “डिजिटल होने का मुख्य उद्देश्य कमाई के माध्यमों में विस्तार करना है, जो बेहद जरूरी हो गया है।”

कश्मीर ऑब्जर्वर डिजिटल के कार्यकारी निदेशक देवांग शाह ने बताया कि उनके डिजिटल संस्करण में वीडियो, लोगों के विचार, बातचीत, बहस और विश्लेषण होंगे जो कि ‘सामान्य से हटकर कुछ अलग होंगे’।

संपादक ने कहा कि यह उस नए बाजार को ध्यान में रखकर किया जा रहा है जो कश्मीर के विजुअल मीडिया को पसंद करता है।

ग्रेटर कश्मीर, राइजिंग कश्मीर, कश्मीर मॉनिटर, कश्मीर इमेजिज जैसे अंग्रेजी दैनिक और कश्मीर उजमा, आफताब, श्रीनगर टाइम्स और चट्टान आदि ने अभी अपने कर्मचारियों की छंटनी नहीं की है, लेकिन उन्होंने अपने प्रिंट की प्रतियां काफी कम कर दी है।

चट्टान के संपादक ताहिर मोहिउद्दीन ने आईएएनएस को बताया, “मौजूदा समय में घाटी के सभी समाचार पत्र बेहद गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। समाचार पत्रों के लिए राज्य सरकार के भी विज्ञापन घटकर 10 प्रतिशत रह गए हैं।”

संपादक ने कहा, “यह एक ऐसी गंभीर स्थिति है कि कोई प्रकाशक या संपादक यह नहीं जानता कि इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाए।”

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