आयुर्वेद ऐसे बीमारियों को जड़ से करता है खत्म

आयुर्वेदिक उपचार का लक्ष्य होता है विकारों को जड़ से खत्म करना। उचित एवं पोषक आहार, स्वस्थ पाचन प्रक्रिया, सकारात्मक जीवनशैली एवं वनौषधियों के साथ हम स्वस्थ एवं सेहतमंद जीवन का लक्ष्य पा सकते हैं। आयुर्वेद में प्रकृतिक संसाधनों में मौजूद घटकों के सक्रिय सहयोग का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि प्रोबायॉटिक्स (जिसे सत्व क्षीर के रूप में भी जाना जाता है)। आयुर्वेद के अनुसार वनौषधियों एवं जड़ीबूटियों में प्रकृति की उपचार क्षमता का खजाना निहीत होता है, इन्हीं जड़ीबूटियों एवं वनौषधियों के जरिए यदि हम प्रकृति के इस उपचार क्षमता रूपी खजाने का उचित मात्रा में सेवन करते हैं तो बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है।

आयुर्वेद ऐसे बीमारियों को जड़ से करता है खत्म

आधुनिक औषधि-विज्ञान के अनुसार यह उपचार क्षमता और कुछ नहीं बल्कि वनौषधियों में मौजूद सक्रिय (प्रकृतिक) चिकित्सा प्रणाली है, जो कि शरीर में दाखिल होते ही अपना चिकित्सीय प्रभाव दिखाती है।

इसी प्रकार से प्रोबायॉटिक्स भी प्रकृति में मौजूद लाभदायक जीवाणू-समूह है, जिसमें प्रकृति की ताकत अर्थात उपचार क्षमता विद्यमान होती है। ऐसे में शरीर में चिकित्सा वनौषधियों के साथ इसका इस्तेमाल कर लेने से उपचार क्षमता में कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है, जिसके फलस्वरूप शरीर की रोग-प्रतिकार क्षमता में वृद्धि होती है, साथ ही शरीर की अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं जैसे कि पाचन प्रणाली एवं चयापचय क्रिया में भी सुधार होता है और बीमारी ठीक होती है या उनका रोकथाम होने में मदद मिलती है। आयुर्वेद औषधियां सबसे शक्तिशाली ऐंटिऑक्सिडेंट्स होती हैं।

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लाभदायक जीवाणुओं का यह समूह पौधों एवं मनुष्य की आंतों में निवास करता है। यही जीवाणू एंजाइम्स की उत्पत्ती करते हैं, जिससे कि आसान एवं जटिल कार्बोहइड्रेड, साथ ही पेप्टाइड्स, जटिल प्रोटीन को पचाने में मदद मिलती है और पाचन प्रक्रिया में सुधार होता है। इसके अलावा ये एक अन्य प्रकार का जीवाणु (नॉनसेप्टिक प्रोटीन मॉलिक्युल्स) भी पैदा करते हैं, जो कि हमारे आंतों के रास्ते आने वाले अनचाहे जीवाणुओं को रोकता है। शरीर के ये अवयव चयापचय के लिहाज से लीवर की ही तरह होते हैं, जो कि आंतों में खास प्रकार के सुधार कामों को पूरा करते हैं।

दुर्भाग्य से आधुनिक औषधियों की दुनिया में हमने प्रोबायोटिक्स अर्थात इन लाभदायक जीवाणुओं की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया है, परंतु धीरे –धीरे अब लोग इसका महत्व समझ रहे हैं। भले ही आयुर्वेद 5000 साल पुराना है, परंतु प्रकृति जीवाणुओं के प्रति जागरूकता एवं उनकी उपचार प्रणाली का पता बीसवीं सदी के आसपास ही चला है। ये लाभदायक जीवाणु पौधों एवं प्रकृति में मौजूद होते हैं, जो कि वनौषधियों एवं जड़ीबूटियों के जरिए जानेअंजाने हमारे शरीर में दाखिल हो जाते हैं।

आयुर्वेद के जानकार सारा ध्यान वनौषधियों एवं जड़ीबूटियों पर देते हैं , परंतु इसी वनौषधियों एवं जड़ीबू‌टियों के साथ संलग्न इस अत्यंत लाभदायक जीवाणुओं को नजरअंदाज कर देते हैं। आधुनिक चिकित्सा- प्रणाली ने पौधौं में निहीत इन लाभदायक जवाणुओं को अंशतः या पूर्णतः बर्बाद कर दिया है , या फिर इनके चिकित्सा उपयोग को पूरी तरह से प्रभावहीन बना दिया है।

सभी को पता है कि आयुर्वेदिक औषधियों का असर धीरे-धीरे होता है, और इसी वजह से पुरानी बीमारियों के उपचार के लिए आयुर्वेदिक औषधियों का प्राथमिक तौर पर इस्तेमाल होता है। अब तो अनुसंधानकर्ता भी साबित कर चुके हैं कि वनौषधियां एवं प्रकृति में निवास करने वाले इन जीवाणुओं का समूह बीमारियों के उपचार के लिए काफी जरूरी है दोनों का एकसाथ इस्तेमाल रोगों के उपचार पर जादुई असर दिखा सकता है।

प्रोबायोटिक्स एवं आयुर्वेदिक औषधियों का साझा इस्तेमाल बीमारियों को ठीक करने का एक रामबाण तरीका है, जिसके कोई दु‌ष्परिणाम भी नहीं होते और जो कि केवल आयुर्वेदिक औषधियों की तुलना में कई गुना तेजी से उपचार करता है। आयुर्वेद औषधियों एवं इन जीवाणुओं अर्थात प्रोबायॉटिक्स के संयोजन को प्रोआयुर्वेद का नाम दिया गया है।

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हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहां न खाने का ठिकाना है न समय पर सोने का ठिकाना, इसके अलावा शारीरिक एवं दिमागी तनाव परिस्थितियों को और भी जटिल बना देते हैं,थकान एवं मूर्छा हम पर हावी हो जाती है। जरूरी है कि हम पोषक एवं सेहतमंद आहार लें साथ ही सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं, ताकि डायबीटीज , थायरॉइड, ब्लड प्रेशर, असिडिटी जैसी बीमारियां हमें अपना शिकार बना न पाएं।

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