आईएस को किया लाइक तो मुश्किल में होगी आपकी लाइफ

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नई दिल्ली। इस्‍लामिक स्‍टेट के बढ़ते प्रभाव के देखते हुए केंद्र सरकार आजकल सोशल मीडिया की निगरानी कर रही है। सरकार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ( आईएस ) का फैलाव रोकने के लिए ‘पुरस्कार और दंड’ दोनों रुख अपनाने के पक्ष में है। गृह मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां आतंकी नेटवर्क के संभावित लक्ष्यों से जुड़ी सोशल मीडिया की गतिविधियों पर बहुत कड़ी नजर रख रही हैं।

आईएस को लेकर सचेत हुई केंद्र सरकार

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंकी संगठन अपना प्रचार करने और अपने लिए लड़ने वालों को भर्ती करने के लिए सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस पर अविश्वास करने का कोई कारण नजर नहीं आता कि वे भारत पर अपनी नजरें टिका सकते हैं।

अधिकारी ने कहा कि यह दोहरा काम है। पहला यह कि उन लोगों की सोशल मीडिया की गतिविधियों पर नजर रखी जाए जो आतंकी दुष्प्रचार का निशाना बन सकते हैं। साथ ही साथ उन्हें कल्याणकारी एवं रोजगार योजनाओं के जरिए मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि साथ ही साथ अल्पसंख्यक समुदाय के युवकों को विभिन्न रियायतों एवं रोजगार की संभावनाओं के जरिए मुख्यधारा में लाने का प्रयास है।

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि जिन युवाओं के पास करने को कुछ नहीं है, जो बेरोजगार हैं, वे भटक सकते हैं। हम लोग उन्हें शिक्षित कर हुनरमंद बनाना चाहते हैं ताकि वे अच्छी तरह से अपनी आजीविका की व्यवस्था कर सकें और अपना जीवन बेहतर ढंग से जी सकें।

सूत्रों के अनुसार, इस रणनीति को लागू करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों के अलावा राज्य सरकारों और उनके पुलिस बलों को प्रयास करने के लिए कहा गया है।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए कहा गया है कि वह विभिन्न कल्याणकारी एवं रोजगार से जुड़ी योजनाएं लागू करे। खासकर देश के ‘संवेदनशील इलाकों’ में इस तरह की योजनाएं शुरू करने के लिए चालू वित्तीय वर्ष में 87 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।

अपना नाम नहीं छापने की गुजारिश के साथ मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में स्किल इंडिया अभियान के तहत मदरसों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न योजनाएं लागू करने को कहा गया है।

अधिकारी ने कहा कि भारतीय मुलसमानों के आईएस की ओर से लड़ने के लिए जाने के मामले कुछ गिने-चुने ही हैं। अभी कोई बड़ा खतरा नहीं है लेकिन उन्हें मौका क्यों दिया जाए?

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