महज एक घंटे में पाकिस्तान के दांत खट्टे करने वाले अर्जन सिंह हारे जिदंगी की जंग

अर्जन-सिंह-का-निधननई दिल्ली। कुछ लोग देश के लिए ऐसे कारनामें कर जाते हैं, जिनको भूल पाना संभव नहीं होता। अपने वतन के लिए कुछ भी कर गुजरने की चाह रखने वाले ऐसे महान व्यक्तित्व को भारतवासी हमेशा अपने जेहन में संजोये रखते हैं। इसी कड़ी में भारतीय वायुसेना के मार्शल अर्जन सिंह का नाम भी आता है। इनका जूनून और प्रतिबद्धता ही इन्हें सबसे अलग बनाता है। दुश्मनों को जंग के मैदान में धूल चटाने वाला यह वीर योद्धा दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे जहां वह ज़िन्दगी और मौत से आखिरी जंग हार गए। आइये आपको बतातें हैं अर्जन सिंह से जुड़ी कुछ ख़ास बातें…

भारतीय सेना में अब तक सिर्फ तीन लोगों को ही फाइव स्टार रैंक मिली है। उनमें से एक अर्जन सिंह भी थे।

अर्जन सिंह के नाम वायुसेना के इतिहास में एयर वाइस मार्शल के पद पर सबसे लंबे समय तक सेवा देने का रिकॉर्ड दर्ज है।

पद्म विभूषण से सम्मानित भारतीय वायुसेना के मार्शल अर्जन सिंह एक मात्र ऐसे ऑफिसर हैं। जिन्हें फाइव स्टार रैंक दी गई। फाइव स्टार रैंक फील्ड मार्शल के बराबर होती है।

वायुसेना के मार्शल अर्जन सिंह के अलावा इस रैंक से सम्मानित व्यक्तिओं में फील्ड मार्शल सैम मानेक शा और फील्ड मार्शल के.म. करियप्पा को यह सम्मान मिला है।

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अर्जन सिंह का सफरनामा

भारतीय वायुसेना के एकमात्र फाइव स्टार रैंक ऑफिसर अर्जन सिंह का जन्म पंजाब के ल्यालपुर में 15 अप्रैल वर्ष 1919 को हुआ था। जोकि अब पाकिस्तान के फैसलाबाद के नाम से जाना जाता है। ये 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे। सन 1965 की लड़ाई में उनके उम्दा प्रदर्शन के लिए उन्हें एयर चीफ मार्शल के पद पर प्रमोट किया गया। अर्जन ही केवल ऐसे चीफ ऑफ एयर स्टॉफ हैं, जिन्होंने एयरफोर्स प्रमुख के तौर पर लगातार पांच साल अपनी सेवाएं दीं।

19 साल की अवस्था में अर्जन सिंह ने रॉयल एयरफोर्स कॉलेज ज्वॉइन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अर्जन सिंह ने बर्मा में बतौर पायलट और कमांडर रहते हुए अपने बेजोड़ साहस का प्रदर्शन किया था। 1950 में भारत के गणराज्य बनने के बाद अर्जन सिंह को ऑपरेशनल ग्रुप का कमांडर बनाया गया था। यह ग्रुप भारत में सभी तरह के ऑपरेशन के लिए जिम्मेदार होता है।

अर्जन सिंह के प्रयासों की बदौलत ही ब्रिटिश भारतीय सेना ने इंफाल पर कब्जा किया। इसके बाद उन्हें डीएफसी की उपाधि से नवाजा गया। 1964 में उन्हें चीफ ऑफ एयर स्टॉफ बनाया गया। 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग में अर्जन सिंह ने आगे बढ़कर वायुसेना के अभियानों का नेतृत्व किया।

पाकिस्तान के खिलाफ जंग में अर्जन सिंह ने अद्भुत लीडरशिप दिखाते हुए, पाकिस्तान के भीतर घुसकर कई एयरफील्ड्स तबाह कर डाले थे।

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इंडियन एयर फोर्स ने दिया था जन्मदिन का तोहफा

अप्रैल 2016 में अर्जन सिंह के 97वें जन्मदिन के अवसर पर एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने पश्चिम बंगाल स्थित पनागढ़ एयरफोर्स बेस को अर्जन सिंह का नाम दिया था, जिसे अब एमआईएफ अर्जन सिंह के नाम से जाना जाता है।

यह पहली बार था जब किसी जीवित ऑफिसर के नाम पर सैन्य प्रतिष्ठान का नाम रखा गया हो। ये सभी उपलब्धियां उन्हें महान से महानतम बनाती हैं।

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