अमेरिका और चीन के व्यापारिक रिश्तों में बढ़ता तनाव भारत के लिए एक ‘अवसर’

प्रख्यात अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने कहा है कि अमेरिका और चीन के व्यापारिक रिश्तों में बढ़ता तनाव भारत के लिए एक ‘अवसर’ की तरह है। उनके मुताबिक ऐसी परिस्थितियों में भारत उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में निवेश के लिए आकर्षित कर सकता है जो चीन के बाहर वैकल्पिक स्थान की तलाश कर रहे हैं।

न्यूयॉर्क स्थित भारतीय महावाणिज्य दूतावास में एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए पनगढ़िया ने भारत से आयातित मोटरसाइकिलों एवं वाहनों पर शुल्क में कमी का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में अमेरिका के साथ ‘आदान-प्रदान’ को लेकर बातचीत करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां ‘चीन से बाहर निकल रही’ हैं। ऐसे में यह भारत के लिए अवसर है कि वह इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत लाने के लिए जो कुछ कर सकती है, वह करे।

ट्रंप सरकार ने पिछले साल मार्च में चीन से आयातित इस्पात एवं एल्युमीनियम उत्पादों पर भारी शुल्क लगाने की घोषणा की थी। इसके बाद अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया।

पनगढ़िया ने इस बात पर बल दिया कि अमेरिका, भारत को अपने बाजार को खोलने के लिए कह रहा है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘नयी सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं’ को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ”यह भारत के लिए अच्छी चीज है। मैं इसे एकतरफा खोल देता लेकिन यहां अमेरिका के साथ बातचीत करने का अवसर बन रहा है। उन्हें कुछ दीजिए और उसके बदले उनसे कुछ लीजिए।”

पनगढ़िया ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिए श्रम कानूनों एवं भूमि अधिग्रहण से जुड़े सुधारों को अधिक उदार बनाने का आह्वान किया।

जनवरी, 2015 से अगस्त, 2017 के बीच नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष रहे पनगढ़िया ने स्वीकार किया कि आंकड़ों को स्थानीय स्तर पर रखने जैसे कुछ मुश्किल मुद्दे हैं लेकिन हार्ली डेविडसन मोटरसाइकिल जैसे मुद्दे को सुलझाया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ”हार्ली डेविडसन से शुल्क हटाइए। दिक्कत क्या है? 70 साल के संरक्षणवाद के बाद आप कितने लंबे वक्त तक अपने ग्राहकों को दंडित कीजिएगा। भारत में आज के समय में वाहनों पर शुल्क लगभग 100 प्रतिशत है। क्यों, इससे किसको लाभ हो रहा है। कुछ शुल्कों का कोई मतलब नहीं है।”

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार यह दावा करते रहे हैं कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर ‘बहुत अधिक शुल्क’ वसूलता है।

पनगढ़िया ने इस बात पर बल दिया कि शुल्क की बजाय भारत अपने लाभ के लिये विनिमय दर का उपयोग कर सकता है।

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उन्होंने कहा, ”रूपये को थोड़ा और कमजोर होने दीजिए, इससे आपके निर्यातकों के लिए द्वार खुलेंगे जबकि इससे शुल्क में कमी से होने वाले नुकसान की भरपाई भी होगी। हमने 1990 के दशक में भी ठीक ऐसा ही किया था।”

पनगढ़िया ने कहा, ”मैं इसे पूरी तरह से भारत के हित में देखता हूं।”

 

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