पांच रुपए में खेतों पर काम करने वाली आज करोड़ों की कंपनी की सीईओ

अनिला ज्योथि रेड्डीयूँ तो जिन्दगी में मुश्किलों का आना आम बात है क्योंकि बिना इनके जिन्दगी की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। वो कहते ही न कि हम सफल तभी हो सकते हैं जब हमने विफलताएं देखी हों। इंसान के जीवन में आने वाली हार ही उसे जीत का हौसला दिलाती है। अगर बात महिलाओं की करी जाए तो उनके लिए मुश्किलें कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं। कभी समाज उनके पैरों में बेड़ियां डालता है तो कभी उनका खुद का परिवार उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। आज हम जिस शख्सियत से आपको रूबरु कराने जा रहे हैं, उनको भी हर कदम पर आगे बढ़ने से रोका गया। इन्होंने न सिर्फ अपने दम पर मुश्किलों का डटकर सामना किया बल्कि अमेरिका की एक कंपनी का सीईओ बनकर दिखाया। हालांकि वारांगल के खेतों में पांच रुपये कमाने से अमेरिका के सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन की सी.ई.ओ बनने तक का सफर अनिला ज्योथि रेड्डी के लिए आसन नहीं था।

अनिला ज्योथि रेड्डी का सफर

अनिला ज्योथि रेड्डी अपने पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थीं। उन्होंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया। फिर उन्हें अनाथाश्रम में डाल दिया गया जहां उन्होंने थोड़ी बहुत पढ़ाई कर ली। शायद घर होतीं तो गरीबी के कारण स्कूल का मुंह देखना तक नसीब न होता। 10वीं में पहले स्थान पर रहने के बावजूद भी गरीबी की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़ना पड़ा। फिर खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हुईं। वो बताती हैं कि कभी भी उन्हें अपने बैकग्राउंड के बारे में बताने में शर्म महसूस नहीं हुई। जबकि उनके अनुभव कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे।

16 साल की होने पर अनिला ज्योथि रेड्डी की जबरदस्ती दूर के एक रिश्तेदार से शादी करा दी गई और दो साल के अंदर उनके दो बच्चे भी हो गए। अपना सपना पूरा करने को भूल चुकी थीं लेकिन अपने बच्चों को अच्छा भविष्य कैसे दिया जाए ये सोचने लगीं। उन्होंने नौकरी के लिए आवेदन करना शुरु किया। 1988 में प्रौढ़ों के स्कूल में उन्हें शिक्षक की नौकरी मिली जहां उन्हें 120 रुपये की पगार मिलने लगी। वो बताती हैं कि ‘उस जमाने में 120 रुपये की बहुत कीमत होती थी। मैं अपने बच्चों के लिए फल और दूध खरीद सकती थी।’

अनिला ज्योथि रेड्डी बताती हैं कि ‘मेरे पति की अस्वीकृति के बावजूद भी मैं अपने बच्चों के साथ मैलारन गांव छोड़कर हनमकोंडा शहर चली गई। वहां मैंने एक टाइपिंग इंस्टीट्यूट ज्वॉइन कर लिया। फिर मैंने कमाई करने के लिए दर्जी का काम करना शुरु कर लिया। जिससे मुझे हर रोज 20 से 25 रुपये मिलने लगे। फिर मुझे जनशिक्षण निलायम में लाइब्ररियन की नौकरी मिल गई।’ उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए एक ओपन स्कूल में दाखिला ले लिया। जहां वो पढ़ाई करने के लिए हर रविवार को जाने लगीं।

1992 में उन्हें अमीनपेत में विशेष शिक्षक की नौकरी मिल गई। लेकिन ये उनके शहर से 70 किलोमीटर दूर था। उनकी सारी तनख्वाह आने-जाने में ही खर्च होने लगी। ज्यादा पैसा कमाने के लिए वो ट्रेन में साड़ियां बेचने लगीं। 1994 में उन्हें रेगुलर जॉब मिल गई जिससे उन्हें हर महीने 2,750 रुपये तनख्वाह मिलने लगा। वो बतौर गर्ल चाइल्ड डेवलेपमेंट ऑफिसर काम करने लगीं।

लेकिन वो कहां रुकने वाली थीं। स्वभाव से दृढ़निश्चयी और महत्ताकांक्षी अनिला के बच्चों के भविष्य के लिए इतने रुपसे बहुत कम थे। उनकी जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट तब आया जब उनकी एक कजन अमेरिका से वापस आई, उसकी बदली हुई जीवनशैली देखकर वो बहुत अचंभित हुईं। उन्होंने भी अपनी कजन की तरह सॉफ्यवेयर कोर्स करके अमेरिका में अपनी किस्मत आजमाने की ठानी।

सॉफ्टवेयर सीखने के लिए उन्होंने हैदराबाद के वी.सी.एल कंप्यूटर में दाखिला ले लिया। ऑफिस से लंबी छुट्टी लेकर पासपोर्ट और वीजा का बंधोबस्त किया और अमेरिका में अपने पति के कजन के पास चली गईं। वहां उन्हें एक दुकान में नौकरी मिल गई। जहां 12 घंटे नौकरी करने के बाद 60 डॉलर की पगार मिलती थी। लेकिन रिश्तेदार के .हां ज्यादा दिन तक रुकना ठीक नहीं था। इसलिए वो एक गुजराती परिवार के घर पेइंग गेस्ट के रुप में रहने लगीं।

वहां उन्होंने की सॉफ्टवेयर सॉल्यूशनंस की सी.ई.ओ ऐना नेनू औडिपोलेडू की आत्मकथा पढ़ी। एक जान पहचान के व्यक्ति ने उनसे एक कंपनी में सॉफ्टवेयर रिक्रूटर के बतौर काम करने के बारे में पूछा। मगर उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं थी। उन्होंने अपनी सफलता के रास्ते आने वाली चुनौतियों से न घबराते हुए अपनी खुद की कंपनी खोलने का निश्चय किया।

फिलहाल उनके बच्चे इंजीनियर ग्रेजुएट हैं, उनकी शादी हो चुकी है और वो अमेरिका में सेटल भी हो चुके हैं। अब रेड्डी अपने सपरे को पूरा करना चाहती हैं। उनका सपना है कि वो 1 हजार युवकों को अपनी कंपनी में प्लेसमेंट दें और एक स्कूल शुरु करें जिसमें एल.के.जी से लेकर पी.जी तक की पढ़ाई हो।

उन्होंने ये साबित किया है कि महिलाएं भी एक बेहतर बिजनेसवुमेन बन सकती हैं। वो महिलाओं को प्रोत्साहित करती हुईं कहती हैं कि महिलाओं को अपने पति, पिता और बेटों पर निर्भर रहने की जगह खुद के पैरों पर खड़ा होना चाहिए। अपनी किस्मत की मास्टर खुद बनिए। और हां एक बात और बच्चों की देखभाल करना आपकी जिंदगी का एक हिस्सा है, आपकी जिंदगी नहीं। बच्चे आपके सफलता में सहायक बनते हैं बाधक नहीं।

उम्मीद है अनिता की स्टोरी महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी आगे बढ़ने और जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करेगी।

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