अनोखा ही नहीं अद्भुत भी है कुंभ का रहस्य, जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान…

हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें लाखों करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रति 12 वर्ष बाद महाकुंभ यानि पूर्ण कुंभ का आयोजन किया जाता है।

इसके अलावा का कुम्भ पर्व चार हिस्सों में बंटा हुआ। जैसे कि अगर पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो ठीक उसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयाग में और फिर तीसरा कुंभ 3 साल बाद उज्जैन में, और फिर 3 साल बाद चौथा कुंभ नासिक में होता है।

अद्भुत भी है कुंभ का रहस्य

ठीक इसी तरह 4 कुंभ पर्व (kumbh mela) को मिलाकर 12 वर्ष हो जाते हैं। तब महाकुंभ यानि पूर्ण कुंभ मनाया जाता है, जो कि 12 वर्षों में एक बार होता है।

इसके अलावा हरिद्वार और प्रयाग में 2 कुंभ पर्व के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी मनाया जाता है और आखिरी अर्धकुंभ 2016 में हरिद्वार में आयोजित किया गया था।

पर क्या आपको पता है की आखिर महाकुंभ का पर्व आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में ही क्यों किया जाता है? आखिर क्यों इतनी भारी मात्रा में नागा साधु, सन्यासी और साधु-संत इस कुंभ के महापर्व पर जल में डुबकी लगाते हैं?

कुम्भ एक ऐसा पर्व है, ऐसा त्यौहार है जिसे अगर कोई अपनी आंखों से ना देखें तो वह इसे नहीं समझ सकता। इसका महत्व और मेले का उल्लास वही समझ सकता है जिसने खुद कुंभ के अद्भुत और पवित्र वातावरण को प्रत्यक्ष देखा और महसूस किया है। कुंभ के पावन पर्व पर चारों ओर श्रद्धालुओं की भीड़, साधु, विद्वान, ऋषि-मुनि और श्रद्धालुजन कुंभ मेले के दौरान पवित्र जल में डुबकी लगाकर खुद को पवित्र करते हैं।

कहते हैं कि आज के लोगों के लिए कुंभ मेला(kumbh mela) वो जगह है जहां जाकर पवित्र जल में डुबकी लगाते है और पापों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। और चाहते हैं कि भगवान उन्हें मोक्ष प्रदान करें।

प्रदोष को कुंभ का महत्व यहीं तक सीमित नहीं है चलिए आपको बतलाते हैं कुंभ पर्व के इतिहास के बारे में कि आखिर कुंभ की शुरुआत क्यों हुई? और यह सिर्फ हरिद्वार, प्रयाग उज्जैन और नासिक में ही क्यों मनाया जाता है?

यह कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कहते हैं महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था।

सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृतांत सुनाया। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।

भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता राक्षसों के साथ संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। समुद्र मंथन से अमृत निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्र पुत्र ‘जयंत’ अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया।

उसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर राक्षसों ने अमृत लाने के लिए जयंत का पीछा किया, और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा।

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कहते हैं कि इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश से अमृत की बूंदे गिरी थी। जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में गिरी तो दूसरी शिव की नगरी हरिद्वार में इसके बाद तीसरी बूंद उज्जैन में तो चौथी बूंद नासिक में जा गिरी।

यही कारण है कि कुंभ के मेले को इन्हीं चार स्थानों पर मनाया जाता है। देवताओं के 12 दिन, मनुष्य के 12 वर्ष के तुल्य होते हैं। अतः कुंभ भी 12 होते हैं। उनमें से 4 कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष 8 कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगन हि प्राप्त कर सकते हैं।

चलिए ज्योतिष के अनुसार जानते है की आखिर कुंभ पर्व के आयोजन की तिथि और जगह कैसे निर्धारित की जाती है।

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