अक्षय तृतीया : आखिर क्‍यों इतनी महत्वपूर्ण है ये तिथि

अक्षय तृतीयालखनऊ। 9 मई को अक्षय तृतीया है। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय न हो। अक्षय तृतीया ऐसी ही तिथि है जिस पर अर्जित किए गए पुण्य का क्षय नहीं होता है। यह ईश्वर की तिथि है। बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया अक्षय तृतीया कही जाती है। यूं तो हर माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि शुभ है लेकिन वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्त में मानी गई है।

अक्षय तृतीया पर विशेष

चूंकि इस दिन किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महा फलदायक माना जाता है।

यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। यह व्रत दान प्रधान है। इस दिन अधिकाधिक दान देने का बड़ा माहात्म्य है। इसी दिन से सतयुग का आरंभ होता है इसलिए इसे युगादि तृतीया भी कहते हैं।

अक्षय तृतीया के शुभ दिन को महालक्ष्मी की प्राप्ति के लिए शुभ मुहूर्त भी माना जाता है और यही वजह है कि लोग सोने और चांदी के आभूषणों की खरीदारी करते हैं। तृतीया तिथि पर संध्याकाल में मां लक्ष्मी का पूजन करने से वर्ष भर के लिए समृद्धि की प्राप्ति होती है। किसी भी तरह की खरीद को इस दिन शुभता से जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि इस दिन लोग बड़ी संख्या में सोने की खरीदी करते हैं।

अक्षय तृतीया दान के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। इस दिन किया गया दान, हवन, पूजन और साधना अक्षय फल देती है। भारतीय कालगणना के अनुसार वर्ष में जो साढ़े तीन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माने गए हैं और उन्हीं में से अक्षय तृतीया एक है। इस दिन गंगा या समुद्र स्नान करना चाहिए।

अक्षय तृतीया पर पूर्वज पृथ्वी के निकट आने से मानव को अधिक कष्ट होने की संभावना होती है। मानव पर पूर्वजों का ऋण भी होता ही है इसलिए पुराणों में लिखा है कि इस दिन तर्पण और पिंडदान भी करना श्रेयस्कर है। गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन सुंदर कांड का पाठ करें। भगवान विष्णु को प्रसन्ना करने के लिए उनके नाम वाले मंत्रों का जाप करें। दुर्गा सप्तशती के तृतीय चरित्र का पाठ करें।

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