जानें हर साल जून के माह में आयोजित होने वाले ‘अंबुबाची मेला’ की खासियत

असम राज्य की राजधानी दिसपुर से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर देश का प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर मां सती के 51शक्तिपीठों में से एक और मुख्य शक्तिपीठ है। आजकल यहां बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से तांत्रिक और साधू-संत बड़ी सख्या में पहुंचने लगे हैं। इसका कारण है यहां आयोजित होनेवाला अंबूबाची मेला। यह मेला हर साल जून के महीने में आयोजित किया जाता है। कहते हैं साल में एक बार माता कामाख्या 3 दिनों के लिए रजस्वला होती हैं। आइए, जानते हैं इस मंदिर की महिला से जुड़ी अन्य बातें…

'अंबुबाची मेला

सतयुग से लेकर कलयुग तक

माता कामाख्या के मंदिर से जुड़ी कथा पौराणिक काल की है। जब माता सती का योनी स्थल इस स्थान पर गिरा तभी से यह स्थान मां के भक्तों की तपस्थली बन गया। धार्मिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में मां कामाख्या के मंदिर में 16 बार, द्वापर युग में 12 बार और त्रेतायुग में 7 बार अंबूबाची के पर्व का आयोजन होता था। अब कलयुग में हर साल जून के महीने में यह आयोजन होता है।

कामाख्या तंत्र का श्लोक

मां कामाख्या को समर्पित कामाख्या तंत्र में एक श्लोक के माध्यम से माता की महिमा का वर्णन किया गया है। श्लोक इस प्रकार है-
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
शरणागतदिनार्त पिरत्राण परायणे।
सर्वस्याति हरे देवि नारायणी नमोस्तुते।।

स्वयं बंद हो जाते हैं कपाट

मां कामाख्यां मंदिर से जुड़े कुछ भक्तों के अनुसार, अंबूबाची पर्व के दौरान कामाख्य मंदिर के गर्भग्रह के कपाट स्वत: बंद हो जाते हैं। इस दौरान यहां दर्शन करना निषेध हो जाता है। रजस्वला की समाप्ति पर मां के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

कुट्टाचकि का सच

कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर स्थान है कुट्टाचकि। यह वही स्थान है जहां पर नरकासुर ने देवी की माया से प्रकट हुए एक मायावी मुर्गे का वध ब्रह्मपुत्र नदी के पार जाकर किया था। कथानुसार, नरकासुर देवी मां को अपनी पत्नी के रूप में प्राप्त करने का आग्रह उनसे कर बैठा। इस पर माता ने उसकी मृत्यु को समीप जानकर उसे तुरंत मृत्युदंड नहीं दिया और कहा कि यदि तुम सूर्योदय से पूर्व ही नील पर्वत के चारों तरफ पत्थर के चार पथों का निर्माण कर दो और मंदिर के साथ एक विश्राम गृह बनवा दो तो मैं तुम्हारी मांग स्वीकार कर लूंगी।

इस तरह मारा गया नरकासुर

माता की बात पर नरकासुर कार्य पूर्ण करने में जुट गया परंतु सूर्योदय होते ही कुक्कुट यानी मुर्गे ने बांग दी, जिसे सुनकर नरकासुर क्रोधित हो गया और क्रोध के कारण उसने मुर्गे को मार डाला और फिर भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध कर दिया। मां शक्ति इस मंदिर से अप्रकट्य हो गईं और मंदिर धराशाई हो गया। बताया जाता है कि इस मंदिर का पुन: निर्माण 17वीं शताब्दी में बिहार के राजा नारा नारायण ने कराया।

इसलिए कहलाता है कामरूप क्षेत्र

कामाख्या मंदिर की यात्रा और दर्शन महाभैरव उमानंद मंदिर के दर्शन के बिना अधूरे माने जाते हैं। महाभैरव उमानंद वही तीर्थ स्थल है, जहां समाधि में लीन भोले शंकर पर कामवाण चलाया था और समाधि से जाग्रत होने पर शिवजी ने कामदेव को भस्म कर दिया था। फिर मां के कामाख्या के आशीर्वाद से कामरूप को नया जन्म मिला और यह क्षेत्र कामरूप क्षेत्र के नाम से विख्यात हुआ।

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कौमारी तीर्थ भी है कामाख्या मंदिर

मां सती के कामाख्या मंदिर को कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। यहां भारत से ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के तंत्र साधक भी आकर साधना करते हैं। इस तीर्थ को वाममार्ग साधना का सर्वोच्छ पीठ माना जाता है। मछंदरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइल जोगी इत्यादि तंत्र साधकों ने यहीं मा शक्ति की साधना की थी।

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